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मई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कळत नकळत - Kalat Nakalat

कळत नकळत केव्हातरी ती मनाच्या मार्गाने कळत नकळत हृदयात आली आठवणीच्या फुलांचा सुवास लेवुनिच ती इथे आली ती जेव्हा समोर येते जाणीवा मनात दाटतात कळत नकळत मग भावना स्पर्श करून जातात अश्याच एका सांझवेळी तिची नि माझी नजरभेट झाली आणि कळत नकळत अशीच प्रीत लागून गेली     केव्हातरी पाहत होइल एकदा अंधारातून उजेडात जाईल आणि तिची पाठमोरी आकृती कळत नकळतच मनाला वेड लावून जाईल       नाजुकशी अशी वळने घेत लटा तिच्या कमरे एवढी झाली फक्त एक रातरानि तिच्या केशात कळत नकळतच मला आवडून गेली

समय कहा - Samay Kahan

समय कहा! हर रोज़ इन्टरनेट पे chatting करते है मगर दोस्तों से बात करने की फुर्सत कहा, मोबाइल पर लम्बे फ्रेंडशिप के sms होते है मगर दोस्तों से मुलाकात करने का समय कहा! orkut facebook twitter में दोस्ती की लम्बी चौड़ी लिस्ट है मगर किसी सच्चे दोस्त की तलाश अभी भी होती है, इतना समय बर्बाद करते है हम networking पर मगर घरके पास के दोस्तों का मिलने का समय कहा! हमेशा busy दिखाते है खुदको चाहे काम हो या ना हो, लेकिन दोस्तोंने अगर मदत के लिए पुकारा तो उसको देने के लिये समय कहा! हम खुदको दुसरो से ज्यादा जरुरतमंद समझते है इसलिए खुदके problem  बड़े लगते है, रोज़मर्रा के life में ऐसे फसे है के आजूबाजू देखने का समय कहा! पैसा हो कार हो एक घर हो बहोत बड़ा इन्ही सपनो के पीछे दौड़ते है, दोस्त अगर बीमार हो तो उसको सिर्फ मोबाइल पर ही खर्रियत पूछते है, दोस्तों के साथ पार्टी करना बहोत अच्छा लगता है क्यू की तब उसके पास दोस्ती का वास्ता है, जब हम दुसरे शहर में जाते है और वही दोस्त दूर हो जाता है! कहने को तो हजार दोस्त है मगर फिर भी तनहा है, क्यों की हमारी सोच  कभी ...