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सोचा के अब चल दूँ - Socha Ke Ab Chal Dun

सोचा के अब चल दूँ। खाली हाथ थे न कोई काम था, दिल में जुनून और जज्बा था। उमंग भी थी भरी-भरी, आखों में भी एक ख्वाब था। आंधियां भी चल पड़ी थी, राहें भी अब धुंधलाई थी। आँखों में आग थी और सोचा के अब चल दूँ। अरमानों के  बवंडर में खुदको तलाश रहा था । किस्मत की अनचाही लकीरें छाँट रहा था। ना मंजिल का पता था ना कोई मक़ाम था। बस खुद में हौसला भरके, सोचा के अब चल दूँ। अब लहरें भी पर्वतों से टकरा रही थी, अब साहिल भी आसमां छुं रहा था। खामोशियाँ भी अब बरस रही थी, दिलमें एक एहसास चुभ रहा था। मैं अकेला किनारों पे बेजारसा, दस्तक दे रहा था। कश्ती भी अब हिचकोले खा रही थी, तभी सोचा के अब चल दूँ। ना बवंडर था, ना आंधियाँ अब सबकुछ शांत था। अब सिर्फ खुला आसमान और समंदर मुझे पुकार रहा था। .... और मैं अब चल दिया। -: नितिन कुमार :-